Wednesday 7 September 2016

इतनी नादानी ? तअज्जुब है ।

इतनी नादानी ?

तअज्जुब है ।

जब से होश संभाला है तब से अब तक कई बार
मरहुमीन के तीजा, दहुम, चेहलुम व बर्सी के मौके
पर होने वाली फातिहा ख्वानी में शिरकत हुई,
शरीक होना भी चाहिये कि ये कारे सवाब है,
लेकिन ये देख कर दिल जलता और अक़ल हैरान
रह जाती है कि, आज भी मुसलमान इल्मे दीन
व क़ानूने इसलाम से बहुत दूर हैं, और इसी वजह
से गैर इस्लामी रुसूमात अपनाये हुये हैं, आज भी
मैं एक जगह फातिहा में शरीक हुवा, देखता क्या हुं
कि फातिहा के लिये जहां एक बरतन में खाना रखा
गया था, वहीं दूसरी तरफ जिस बकरे को इसाले सवाब
का खाना बनाने के लिये ज़बह किया गया उसी बकरे
की मुंडी, पैर, और चमडा भी रखा हुवा है, मैं हैरत
से इन चीज़ो को देखता रहा, फिर देखा कि साथ ही
मरहूम के कपडे, बिस्तर, और दीगर कुछ चीजें भी
रखी हुई हैं, और हैरत की इन्तिहा तो तब हुई, जब नज़र खैनी (तंबाकू) की पुडी पर पड़ी,

मेरे भाईयो, आपने भी इस तरह देखा होगा, क्या ये
गैर मुस्लिमों का रिवाज नहीं, क्या यही तरीक़ा है
इसाले सवाब का ?, क्या फातिहा के लिये ये चीजें
दरकार हैं ? याद रखो मरहूम के लिये अब तुम्हारे
लिबास, बिस्तर, बकरे के सर और पैर, खैनी व
तंबाकू की कोई हाजत नहीं, बल्की वो तो मोहताज
है तुम्हारी दुआओं का, क़ुरआन की तिलावत
नमाज़ व रोज़ों के सवाब का, सदक़ा व खैरात से
मिलने वाली नेकियों का, लिहाज़ा फुज़ूल व बेकार
रस्म व रिवाज से बचो, शरई दायरे में रहते हुये
अपने मरहुमीन के लिये, सदक़ा व खैरात के
ज़रीये, गरीबों मिस्कीनों को खाना खिला कर,
दीनी मदरसों में कीताबें देकर, मस्जिदों की
तामीर मे हिस्सा लेकर उसका सवाब मरहूमीन को
पहुंचाये, और इसाले सवाब की महफिलों और
फातिहा खानी को गैर इस्लामी रुसुमात व फुज़ूल
चीज़ों से पाक रखो, 


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किताबे: बरकाते शरीअत, बरकाते सुन्नते रसूल, माहे रामज़ान कैसें गुज़ारे, अन्य किताब लेखक: मौलाना शाकिर अली नूरी अमीर SDI हिन्दी टाइपिंग: युसूफ नूरी(पालेज गुजरात) & ऑनलाईन पोस्टिंग: मोहसिन नूरी मन्सुरी (सटाणा महाराष्ट्र) अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे आमीन. http://sditeam.blogspot.in