*बरकाते शरीअत पोस्ट -006*
🏽 *ईमान का बयान पार्ट 06*
*🔹الصــلوةوالسلام عليكيارسولالله*
*🔹ﷺ*
*मौत के मुतल्लिक अकाइद 🏽 *
मौत का आना भी हक़ है, हर शख्स की उम्र
मुकर्रर है न उस से घट सकती है और न बढ़सकती है। जब जिंदगी का वक़्त पूरा होजाता है
तो *हजरत इजराईल (जो मौत के फिरिश्ते*
*है)* आते है और बन्दे की रूह निकाल कर ले
जाते है। लेकिन रूह बदन से निकल कर मिटती
नही है बल्कि आलमे बर्ज़ख़ में रहती है। ईमान
व अमल के एतबार से रूह के लिये अलग-
अलग जगह मुकर्रर है, कयामत आनेतक वही
रहेगी। बहरहाल रूह मिटती नही है और जिस
हाल में भी हो अपने बदन से एक तरह का
लगाव रखती है बदन की तकलीफ से उसेभी
तकलीफ होती है और बदनके आरामसे रूह
भी आराम पाती है और जो कोई कब्र पर आए
उसे देखती, पहचानती और उस की बात भी
सुनती है। मुसलमान की निस्बत से तो हदीस
शरीफ में आया है की जब मुसलमान मरजाता
है तो उसकी राह खोलदी जाती है, जहां चाहे
जाए। हजरत शाह अब्दुल अज़ीज़ मोहद्दिसे
देहलवी رحمت الله عليه फरमाते है कि
*" रूह के लिये कोई जगह, दूर या नज्दीक*
*नही बल्कि सब बराबर है। "*
अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा
अमल करनेकी तौफ़ीक़ अता करे
*हवाला: बरकाते शरीअत स.79*
अताए हुजूर मुफ़्तीए आजम हिन्द
*मौलाना मोहम्मद शाकिर अली नूरी*
अमीर ए सुन्नी दावते इस्लामी
अमल करनेकी तौफ़ीक़ अता करे
*हवाला: बरकाते शरीअत स.79*
अताए हुजूर मुफ़्तीए आजम हिन्द
*मौलाना मोहम्मद शाकिर अली नूरी*
अमीर ए सुन्नी दावते इस्लामी
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किताबे: बरकाते शरीअत, बरकाते सुन्नते रसूल, माहे रामज़ान कैसें गुज़ारे, अन्य किताब लेखक: मौलाना शाकिर अली नूरी अमीर SDI हिन्दी टाइपिंग: युसूफ नूरी(पालेज गुजरात) & ऑनलाईन पोस्टिंग: मोहसिन नूरी मन्सुरी (सटाणा महाराष्ट्र) अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे आमीन. http://sditeam.blogspot.in