Tuesday 9 August 2016

🏼माहे रमज़ान के एहतिराम का ईनाम , माहे रमज़ान कैसे गुजारे ..? पार्ट -11

👉🏽 माहे रमज़ान कैसे गुजारे ? ? ? 👈🏽
👉🏽 #पार्ट -11
🔹بسم الله الرحمن الرحيم
🔹الصــلوةوالسلام‎ عليك‎‎يارسول‎الله
🔹ﷺ

👇🏼माहे रमज़ान के एहतिराम का ईनाम
बुखारा के शहर में एक मजूसी (आग की पूजा
करने  वाले )  का  लड़का   मुसलमानों   के
बाज़ार में रमज़ान के महीने में खाना खा
रहा था, यह  देख कर उसके बाप ने अपने
लड़के के मुँह पर तमाचा मारा और सख्त
नाराज़  हुआ, 
लड़के ने  कहा: अब्बा  जान !
तुम भी तो रमज़ान में  हर रोज़ दिन के वक़्त
खाते हो !
बाप ने  कहा: वाक़ई में रोज़ा  नहीं
रखता और खाना भी खाता हूँ मगर खुफिया
तौर पर घर बैठ कर खाता हूँ,  मुसलमानों के
सामने नहीं खाता हूँ ! ईस माहे मुबारक का
एहतराम करता हूँ।.... कुछ अरसे बाद उस
मजूसी का  इंतिकाल हो गया  तो बुखारा के
किसी नेक आदमीने उसे ख्वाब में देखा कि
वह जन्नतमे टहल रहा है,
उन्होने मजूसी से पूछा: तू जन्नत मे कैसे दाखिल हो गया ? तू तो मजूसी था !...........
उसने कहा: वाक़ई
मैं  मजूसी था  मगर  मौत का वक़्त  करीब
आया तो  माहे  रमज़ान के  एहतेराम कि
बरकतसे अल्लाह तआलाने मुजे इस्लाम
लाने की  तौफीक़  दी और  में  मुसलमान
हो कर  मरा और  यह जन्नत  रमज़ान के
एहतराम में  इस्लाम  मिलने पर अल्लाह
तबारक व तआला ने अता फर्माई।
📚(नुज़हतुल मजालिस, सफा 580)

मेरे प्यारे आक़ा  صَلَّى اللّٰهُ عَلَئهِٖ وَسَلَّم  के
प्यारे  दिवानो ! गौर करो  कि एक  आतिश
परस्तने माहे रमज़ान का एहतेराम किया
तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उसके एवज़
उसे ईमान कि दौलत बेबहासे नवाज़ कर
जन्नत अता फर्मा दी,..............तो हम तो
मुसलमान हैं अगर  हम अय्यामे  रमज़ान
कि क़द्र करेंगे  उसकी हुर्मतको पामाल न
करेंगे तो  ज़रूर  रब्बे क़दीर के  फज्ल  व
करम के मुस्तहिक़ करार पाऐन्गे।
रब्बे क़दीर कि बारगाहमें दुआ है कि हम सब
को माहे रमज़ान कि  क़द्र करने कि  तौफीक़
अता फर्माए।
📚 (हवाला) माहे रमज़ान कैसे गुजारे 
मुसन्निफ़ अताए हुजूर मुफ़्तीए आजम हिन्द
    मौलाना मोहम्मद शाकिर अली नूरी
          अमीर ए सुन्नी दावते इस्लामी

अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा
अमल करनेकी तौफ़ीक़ अता करे

पूरा पढ़ने के लिए ये वेबसाइट ओपन करे www.SDITeam.blogspot.in
Copy Paste करके Share करे इल्मे दिन आम करे 

No comments:

Post a Comment

किताबे: बरकाते शरीअत, बरकाते सुन्नते रसूल, माहे रामज़ान कैसें गुज़ारे, अन्य किताब लेखक: मौलाना शाकिर अली नूरी अमीर SDI हिन्दी टाइपिंग: युसूफ नूरी(पालेज गुजरात) & ऑनलाईन पोस्टिंग: मोहसिन नूरी मन्सुरी (सटाणा महाराष्ट्र) अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे आमीन. http://sditeam.blogspot.in