👉🏽 माहे रमज़ान कैसे गुजारे ? ? ? 👈🏽
👉🏽 #पार्ट -36
🔹بسم الله الرحمن الرحيم
🔹الصــلوةوالسلام عليكيارسولالله
🔹ﷺ
👇🏼ज़कात का बयान👇🏼
मेरे प्यारे आक़ा صَلَّى اللّٰهُ عَلَئهِٖ وَسَلَّم के
प्यारे दिवानो ! साल में एक मर्तबा मलिके
निसाबपर अपने मालमें से ज़कात निकालना
भी ईसी तरह फर्ज़है जिसतरह नमाज़, रोज़ा,
हज वगैरा फर्ज़ हैं। अगर कोई शख्स उसकी
फर्ज़ियतका इन्कार करेतो काफिर होजाएगा
और अगर कोई शख्स अदा न करे तो सख्त
मुजरिम ठहरेगा और एताबे ईलाही का
हक्क़दार होगा।
माहे रमज़ानुल मुबारक में
नफ्लका षवाब फर्ज़ के बराबर और फर्ज़का
षवाब सत्तर फर्ज़ के बराबर हो जाता है,
लिहाज़ा हमें माहे रमज़ानुल मुबारक में अपने
मालमेंसे ज़कात अदाकर के अल्लाह तआला
कि बंदगी और उसके हुक़्म के सामने सर
तस्लीम करने का षबूत देना चाहिए।
👇🏼ज़कात किस पर वाजिब है👇🏼
ज़कात हर उस मुसलमान पर वाजिब है जो
आक़िल, बालिग, आज़ाद, मालिके निसाबहो
और निसाब का पूरे तौर पर मालिक़ हो,
निसाबे दीन और हाजते असलिया से फारिग
हो और उस निसाबपर पूरासाल गुज़र जाए।
📚 (कुतुबे फिक़्ह)
👇🏼निसाबे ज़कात👇🏼
ज़कात फर्ज़ होने के लिए माल व दौलत की
एक खास हद और मुतय्यन मिक़दार है,
जिसको शरीअत की इस्तिलाह में “निसाब”
कहा जाता है। ज़कात उसी वक़्त फर्ज़ है
जब माल ब क़द्रे निसाब हो, निसाब से कम
माल व दौलत पर ज़कात फर्ज़ नहीं।
👉🏾 सोने का निसाब साड़े सात तोला है।
👉🏾 चांदीका निसाब साड़ेबावन तोलाहै।
👉🏾और माले तिजारत का निसाब यह है
कि उसकी किंमत सोने या चांदी के
निसाब के बराबर हो या सोने, चांदी कि
ब कद्रे किंमत बसूरत रूपिये हों।
ज़कातके मुतअल्लीक ज़रूरीमसाईल अगली
पोस्टमे दिए जाएँगे तब तकके लिए जुड़े रहे।
📚 (हवाला) माहे रमज़ान कैसे गुजारे
मुसन्निफ़ अताए हुजूर मुफ़्तीए आजम हिन्द
मौलाना मोहम्मद शाकिर अली नूरी
अमीर ए सुन्नी दावते इस्लामी
अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा
अमल करनेकी तौफ़ीक़ अता करे
पूरा पढ़ने के लिए ये वेबसाइट ओपन करे www.SDITeam.blogspot.in
Copy Paste करके Share करे इल्मे दिन आम करे
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🔹بسم الله الرحمن الرحيم
🔹الصــلوةوالسلام عليكيارسولالله
🔹ﷺ
👇🏼ज़कात का बयान👇🏼
मेरे प्यारे आक़ा صَلَّى اللّٰهُ عَلَئهِٖ وَسَلَّم के
प्यारे दिवानो ! साल में एक मर्तबा मलिके
निसाबपर अपने मालमें से ज़कात निकालना
भी ईसी तरह फर्ज़है जिसतरह नमाज़, रोज़ा,
हज वगैरा फर्ज़ हैं। अगर कोई शख्स उसकी
फर्ज़ियतका इन्कार करेतो काफिर होजाएगा
और अगर कोई शख्स अदा न करे तो सख्त
मुजरिम ठहरेगा और एताबे ईलाही का
हक्क़दार होगा।
माहे रमज़ानुल मुबारक में
नफ्लका षवाब फर्ज़ के बराबर और फर्ज़का
षवाब सत्तर फर्ज़ के बराबर हो जाता है,
लिहाज़ा हमें माहे रमज़ानुल मुबारक में अपने
मालमेंसे ज़कात अदाकर के अल्लाह तआला
कि बंदगी और उसके हुक़्म के सामने सर
तस्लीम करने का षबूत देना चाहिए।
👇🏼ज़कात किस पर वाजिब है👇🏼
ज़कात हर उस मुसलमान पर वाजिब है जो
आक़िल, बालिग, आज़ाद, मालिके निसाबहो
और निसाब का पूरे तौर पर मालिक़ हो,
निसाबे दीन और हाजते असलिया से फारिग
हो और उस निसाबपर पूरासाल गुज़र जाए।
📚 (कुतुबे फिक़्ह)
👇🏼निसाबे ज़कात👇🏼
ज़कात फर्ज़ होने के लिए माल व दौलत की
एक खास हद और मुतय्यन मिक़दार है,
जिसको शरीअत की इस्तिलाह में “निसाब”
कहा जाता है। ज़कात उसी वक़्त फर्ज़ है
जब माल ब क़द्रे निसाब हो, निसाब से कम
माल व दौलत पर ज़कात फर्ज़ नहीं।
👉🏾 सोने का निसाब साड़े सात तोला है।
👉🏾 चांदीका निसाब साड़ेबावन तोलाहै।
👉🏾और माले तिजारत का निसाब यह है
कि उसकी किंमत सोने या चांदी के
निसाब के बराबर हो या सोने, चांदी कि
ब कद्रे किंमत बसूरत रूपिये हों।
ज़कातके मुतअल्लीक ज़रूरीमसाईल अगली
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मुसन्निफ़ अताए हुजूर मुफ़्तीए आजम हिन्द
मौलाना मोहम्मद शाकिर अली नूरी
अमीर ए सुन्नी दावते इस्लामी
अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा
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किताबे: बरकाते शरीअत, बरकाते सुन्नते रसूल, माहे रामज़ान कैसें गुज़ारे, अन्य किताब लेखक: मौलाना शाकिर अली नूरी अमीर SDI हिन्दी टाइपिंग: युसूफ नूरी(पालेज गुजरात) & ऑनलाईन पोस्टिंग: मोहसिन नूरी मन्सुरी (सटाणा महाराष्ट्र) अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे आमीन. http://sditeam.blogspot.in